Supreme Court on JAG : सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को भारतीय सेना की उस नीति को रद्द कर दिया जिसमें महिलाओं की तुलना में पुरुषों के लिए जेएजी (JAG) के ज़्यादा पद आरक्षित किए गए थे। कोर्ट ने इसे ‘मनमाना’ और समानता के अधिकार का उल्लंघन बताया। कोर्ट ने केंद्र को निर्देश दिया कि वह दो महिला याचिकाकर्ताओं में से एक को जेएजी विभाग में शामिल करे और पुरुष व महिला उम्मीदवारों की एक संयुक्त मेरिट सूची जारी करे।
फैसला सुनाते हुए जस्टिस मनमोहन ने कहा कि कार्यपालिका पुरुषों के लिए भर्ती की आड़ में रिक्तियाँ आरक्षित नहीं कर सकती। JAG (जज एडवोकेट जनरल) विभाग में पुरुषों के लिए छह और महिलाओं के लिए केवल तीन सीटें आवंटित करने की नीति को “मनमाना” और 2023 भर्ती नियमों के विपरीत करार दिया गया। जस्टिस मनमोहन और जस्टिस दीपांकर दत्ता की पीठ ने कहा, “कार्यपालिका पुरुषों के लिए रिक्तियाँ आरक्षित नहीं कर सकती। पुरुषों के लिए छह और महिलाओं के लिए तीन सीटें मनमाना है और भर्ती की आड़ में इसकी अनुमति नहीं दी जा सकती।”
अदालत ने कहा, “ gender neutrality और 2023 के नियमों का सही अर्थ यह है कि संघ सबसे योग्य उम्मीदवारों का चयन करेगा। महिलाओं की सीटों को सीमित करना समानता के अधिकार का उल्लंघन है।”
याचिका पर सुनवाई करते हुए, पीठ ने आगे टिप्पणी की कि “यदि ऐसी नीतियों का पालन किया जाता है तो कोई भी राष्ट्र सुरक्षित नहीं रह सकता” और सरकार को भर्ती करने और पुरुषों और महिलाओं दोनों सहित सभी उम्मीदवारों के लिए एक संयुक्त मेरिट सूची प्रकाशित करने का निर्देश दिया।
अदालत ने आगे कहा, “महिलाओं को उनके पिछले नामांकन न करने की क्षतिपूर्ति के लिए, भारत संघ महिला उम्मीदवारों को कम से कम 50 प्रतिशत रिक्तियां आवंटित करेगा। हालांकि, पुरुष उम्मीदवारों की तुलना में महिलाओं की योग्यता के बावजूद उन्हें 50 प्रतिशत सीटों तक सीमित करना समानता के अधिकार का उल्लंघन है…।”
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