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चीन पर बिना सबूत बोले राहुल गांधी, सुप्रीम कोर्ट ने लगाई फटकार — कहा ‘अगर आप सच्चे भारतीय होते…

Rahul Gandhi spoke without proof on China
inkhbar News
  • Last Updated: August 4, 2025 13:47:27 IST

 Supreme court to Rahul Gandhi : सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कांग्रेस सांसद और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी को चीन पर दिए गए एक पुराने बयान को लेकर कड़ी फटकार लगाई। यह मामला 9 दिसंबर, 2022 को भारत और चीन की सेनाओं के बीच अरुणाचल प्रदेश के तवांग सेक्टर में हुई झड़प के बाद राहुल गांधी द्वारा भारतीय सेना पर की गई एक कथित टिप्पणी से जुड़ा है।

भारत जोड़ो यात्रा में कही थी यह बात

सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने तीखी टिप्पणी करते हुए कहा, “यदि आप सच्चे भारतीय हैं, तो आप इस तरह की बात नहीं कहेंगे।” अदालत ने राहुल गांधी से सवाल किया कि उन्हें यह जानकारी कैसे मिली कि चीन ने 2000 वर्ग किलोमीटर भारतीय जमीन पर कब्जा कर लिया है। साथ ही अदालत ने कहा कि विपक्ष के नेता होने के नाते उन्हें संसद जैसे उपयुक्त मंच पर अपनी बात रखनी चाहिए, न कि सोशल मीडिया या जनसभाओं में इस तरह के संवेदनशील दावे करने चाहिए। यह टिप्पणी राहुल गांधी द्वारा 2023 में निकाली गई भारत जोड़ो यात्रा के दौरान की गई थी, जिसमें उन्होंने दावा किया था कि एक पूर्व सेना अधिकारी ने उन्हें बताया कि चीन ने करीब 2000 वर्ग किलोमीटर भारतीय क्षेत्र पर कब्जा कर लिया है। उनके इस बयान पर उत्तर प्रदेश के एक निवासी ने मानहानि का मामला दर्ज किया था, जिसके खिलाफ राहुल गांधी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की।

संवेदनशील मुद्दों पर बयान देने में जिम्मेदारी लें

राहुल गांधी की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने दलील दी कि उनके मुवक्किल ने एक नागरिक के तौर पर अपनी राय रखी थी और यह बयान संसद से बाहर दिया गया था, जो संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में आता है। हालांकि, अदालत ने स्पष्ट किया कि सेना जैसे संवेदनशील मुद्दों पर बयान देने में जिम्मेदारी और तथ्यों की पुष्टि बेहद जरूरी है। सुप्रीम कोर्ट ने मामले में उत्तर प्रदेश सरकार और शिकायतकर्ता को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है, साथ ही निचली अदालत की कार्यवाही पर फिलहाल अंतरिम रोक (stay) लगा दी है। अदालत ने याचिका की अगली सुनवाई के लिए तीन सप्ताह का समय तय किया है। इस पूरे घटनाक्रम ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि सार्वजनिक जीवन में बैठे नेताओं को कितनी जिम्मेदारी के साथ संवेदनशील मुद्दों पर बोलना चाहिए और क्या उनके बयानों का कानूनी मूल्यांकन जरूरी है।

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