Marathi Language Controversy : करीब दो दशकों से अलग-अलग राजनीतिक रास्तों पर चल रहे ठाकरे परिवार के दो चचेरे भाई,उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे एक बार फिर एकजुट होते नजर आ रहे हैं. इस बार वजह है नई शिक्षा नीति, जिसमें राज्य के प्राथमिक स्कूलों में हिंदी भाषा को अनिवार्य किए जाने की योजना बनाई गई है. इस कथित हिंदी थोपने की कोशिश के खिलाफ राज्य में विरोध की लहर तेज हो गई है और यही मुद्दा मराठी अस्मिता के नाम पर दोनों ठाकरे बंधुओं को एक मंच पर लाने का माध्यम बनने वाला है.
गौर करने वाली बात है कि शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे गुट) और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) पहली बार किसी साझा सांस्कृतिक मुद्दे पर एक जैसी रणनीति बनाते हुए नजर आ रहे हैं. दोनों दलों ने आगामी जुलाई महीने में हिंदी के विरोध में दो बड़े आंदोलन की घोषणा की है.
राज ठाकरे जहां 5 जुलाई को मुंबई में एक बड़ी रैली निकालने जा रहे हैं, वहीं उद्धव ठाकरे की अगुवाई में 7 जुलाई को मराठी समन्वय समिति द्वारा एक विशाल मोर्चा आयोजित किया जाएगा.दिलचस्प बात यह है कि पहले राज ठाकरे की रैली की तारीख 6 जुलाई तय की गई थी, लेकिन बाद में इसे बदलकर 5 जुलाई कर दिया गया.मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक यह बदलाव उद्धव गुट के साथ समन्वय को ध्यान में रखते हुए किया गया,जो इस सहयोग की शुरुआत मानी जा रही है.
राज ठाकरे ने अपनी रैली को किसी भी राजनीतिक रंग से दूर रखने का आह्वान किया है.उन्होंने जनता से अपील की है कि वे बिना किसी पार्टी के झंडे या नारे के इस आंदोलन में भाग लें और केवल मराठी पहचान को केंद्र में रखें.यह बयान स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि राज ठाकरे अब सांस्कृतिक मुद्दों पर एक साझा कार्यक्रम की तलाश में हैं.
दोनों नेताओं का साझा विरोध राजनीतिक गलियारों में यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या ठाकरे बंधु फिर से एक हो सकते हैं? मीडिया सूत्रों का कहना है कि पर्दे के पीछे दोनों खेमों के बीच संवाद चल रहा है. एक वरिष्ठ नेता ने पुष्टि की है कि उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे के बीच समन्वय को लेकर गंभीर बातचीत हो रही है, हालांकि इस बातचीत में शामिल नेताओं के नाम सार्वजनिक नहीं किए गए हैं. शिवसेना (उद्धव गुट) के वरिष्ठ नेता संजय राउत ने भी सोशल मीडिया एक्स पर यह जानकारी साझा की है कि दोनों नेता हिंदी थोपने के विरोध में साझा रणनीति तैयार कर रहे हैं.
सरकार द्वारा लागू किए जा रहे तीन-भाषा फार्मूले के तहत हिंदी को प्राथमिक शिक्षा में अनिवार्य रूप से पढ़ाए जाने की योजना बनाई गई है.इस पर मराठी भाषी समुदाय में गहरी नाराज़गी है.आलोचकों का कहना है कि यह कदम स्थानीय भाषाओं और संस्कृति पर कुठाराघात है और मराठी अस्मिता के खिलाफ है.
बता दें कि यह पहली बार है जब उद्धव और राज ठाकरे किसी बड़े सार्वजनिक मुद्दे पर एक जैसे सुर में बोलते नजर आ रहे हैं.दोनों नेताओं की रैलियां अगर सफल होती हैं, तो यह महाराष्ट्र की राजनीति में एक नई राजनीतिक धुरी बनने का संकेत दे सकती हैं.हालांकि औपचारिक गठबंधन की घोषणा अभी दूर की बात लगती है, लेकिन सांस्कृतिक एकजुटता की यह पहल संभावित पुनर्मिलन का मंच जरूर बन सकती है.