america pakistan relations : बीते 4 चार दिनों से जारी इजरायल – ईरान संघर्ष के बीच वैश्विक कूटनीतिक मंच पर कुछ ऐसा हो रहा जिसके पीछे की राजनीति को समझना जरूरी है. दो मुस्लिम देशों की इस लड़ाई में कई मुस्लिम देश इसलिए अपना पक्ष ले रहें है क्योंकि उन्हें अपनी महत्वाकांझा भी तो देखनी है, खैर… जब इजरायल ने ईरान पर सैन्य कार्रवाई की तो पाकिस्तान ने सार्वजनिक रूप से इजरायल की आलोचना की.
पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने पाकिस्तानी संसद में कहा कि इजरायल ने ईरान, यमन और फिलिस्तीन को निशाना बनाया है और अगर मुस्लिम देश अब भी एकजुट नहीं हुए तो सबका यही हश्र होगा. उन्होंने मुस्लिम देशों से इजरायल के साथ राजनयिक संबंध खत्म करने की अपील की और OIC (इस्लामिक सहयोग संगठन) से संयुक्त रणनीति बनाने का आह्वान किया. पाकिस्तान की ओर से यह भी कहा गया कि वह इस मुश्किल वक्त में ईरान के साथ खड़ा है.
पाकिस्तान देगा परमाणु जवाब?
मामले में हालात तब और बदल गए जब ईरान की रिवोल्यूशनरी गार्ड (IRGC) के सीनियर कमांडर जनरल मोहसेन रेजाई ने दावा किया कि पाकिस्तान ने ईरान को भरोसा दिलाया है कि अगर इजरायल ने ईरान पर परमाणु हमला किया तो पाकिस्तान भी इजरायल पर परमाणु हमला करेगा.
रेजाई का यह दावा पाकिस्तान के लिए एक बड़े झटके से कम नहीं था क्योंकि पाकिस्तान कहता है की उसकी परमाणु नीति “नो फर्स्ट यूज” और आत्मरक्षा केंद्रित न्यूक्लियर पॉलिसी के अनुसार है. लेकिन ईरान का दावा पाक के इस नीति के बिल्कुल विपरीत है. रेजाई का दावा यह संकेत कर रहा था कि एक दूसरे देश की रक्षा के लिए पाक परमाणु का इस्तेमाल कर सकता है
पाकिस्तान की सफाई
हालंकि इस बयान के अंतरराष्ट्रीय मीडिया में आने के बाद पाकिस्तान पलटी मार गई. पहले रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ और फिर विदेश मंत्री इशाक डार ने यह कहकर सफाई दी कि पाकिस्तान ने कभी इजरायल पर परमाणु हमला करने की बात नहीं की. डार ने संसद में कहा कि परमाणु हमले को लेकर जो कहा जा रहा है, वह पूरी तरह मनगढ़ंत और गैर-जिम्मेदाराना है. पाकिस्तान की परमाणु नीति 1998 से नहीं बदली है और यह पूरी तरह आत्मरक्षा के लिए है.
क्या है पाकिस्तान की नई अमेरिका नीति
दिलचस्प बात यह है कि यह पूरा घटनाक्रम उस समय घटा जब पाकिस्तान के फील्ड मार्शल जनरल आसिम मुनीर अमेरिका दौरे पर है. हैरान करने वाली बात ये भी है कि यह दौरा ऐसे समय हुआ है जब ऑपरेशन सिंदूर के बाद अमेरिका और पाकिस्तान के रिश्तों में नई गर्मजोशी देखने को मिली. पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दावा किया था कि उन्होंने भारत-पाक युद्ध को ट्रेड डील के जरिए टाल दिया. हालांकि भारत ने इस दावे को खारिज कर दिया, लेकिन पाकिस्तान और ट्रंप के बीच नजदीकी साफ दिखने लगी है.
ट्रंप-आसिम मुनीर नजदीकी
मीडिया रिपोर्ट की मानें तो आसिम मुनीर का अमेरिका दौरा केवल सैन्य सहयोग तक सीमित नहीं है. पाकिस्तान ने अमेरिका को बलूचिस्तान में खनन और मिनरल एक्सप्लोरेशन के ठेके दिए हैं इसके साथ क्रिप्टो डील भी किया गया है. अमेरिकी थिंक टैंक और सीनेटरों से मुनीर की मुलाकातें इस बात का संकेत हैं कि अमेरिका पाकिस्तान को एक रणनीतिक सहयोगी के रूप में दोबारा अहमियत देने लगा है,खासतौर पर ईरान और चीन के खिलाफ रणनीतियों में.
पाकिस्तान और ईरान की 909 किलोमीटर लंबी सीमा अमेरिका के लिए बेहद अहम है. अमेरिका नहीं चाहता कि ईरान परमाणु शक्ति बने. इसलिए इजरायल की सैन्य कार्रवाइयों के बावजूद असली कंट्रोल अमेरिका के पास है. ऐसे में पाकिस्तान की जमीन और खुफिया नेटवर्क अमेरिका के लिए “मॉनिटरिंग बेस” की तरह काम आ सकते हैं. विशेषज्ञों की मानें तो जैसा की कोल्ड वॉर के समय अमेरिका ने सोवियत यूनियन को कमजोर करने के लिए पाकिस्तान का इस्तेमाल किया था. आज वही रणनीति ईरान और चीन के खिलाफ दोहराई जा रही है.
ईरान को लेकर पाकिस्तान का दोहरा चेहरा क्यों?
उधर भले ही पाकिस्तान हमेशा खुद को इस्लामी दुनिया का रहनुमा बताने की कोशिश करता है. लेकिन सच्चाई यह है कि पाकिस्तान इस समय आर्थिक संकट से जूझ रहा है और उसे पश्चिमी देशों से वित्तीय सहायता चाहिए. ऐसे में वह सीधे तौर पर इजरायल या अमेरिका से टकराने की स्थिति में नहीं है. पाकिस्तान की स्थिति यह है कि वह ईरान से जुड़ाव दिखाना तो चाहता है, लेकिन उसके हालात अमेरिका और इजरायल को नाराज़ नहीं करने वाले नहीं है.