New Delhi : हर साल जैसे ही मानसून की पहली गड़गड़ाहट होती है भारत के गांवों में एक अनदेखा डर घर करने लगता है. यह डर है आकाशीय बिजली (Bihar Mausam Update ) का. एक ऐसी प्राकृतिक आफत जो न दिखती है और ना ही अपने आने जाने पता बताती है..लेकिन जब आती है तो जीवन को पलभर में राख कर देती है. हर साल सैकड़ों लोग और दर्जनों परिवार इस आफत से जीवन भर के लिए आहत हो जाता जिसका जख्म कभी ना भरने वाला है.
बिजली गिरने हर साल 39% मौतें
NCRB के मुताबिक प्राकृतिक आपदाओं से हर साल होने वाले कुल मौतों में करीब 39% मौतें यानी की औसतन करीब 2500 लोगों की मौत (Deaths Due To Lightning) आकाशीय बिजली गिरने से होती हैं.ये हैरान करने वाले आंकडें आपको और भी चौंका देंगे.क्योंकि नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) का ही एक और आंकड़ा बताता है कि देश में आकाशीय बिजली से मौत मामले में बिहार दूसरे नंबर पर है. पिछले 5 साल के दौरान आकाशीय बिजली की चपेट में आने से बिहार में 1000 से ज्यादा लोगों की जान गवाईं है.आपदा प्रबंधन विभाग के आंकड़ों के अनुसार प्रदेश में 2024 में 253, 2021 में 280, 2022 में 400, 2023 में 242 लोगों की जान जा चुकी है. सिर्फ इस साल की बात करने तो इस आपदा से अब तक बिहार में दर्जनों लोगों की मौतें हो चुकी है और सैकड़ों घायल हुए हैं.
क्यों गिरती है बिजली ?
ऐसे में सवाल है कि आखिर ऐसा क्या है जिसके कारण देश का यह प्रदेश इससे सबसे ज्यादा परेशान है.क्यों गिरती है आकाशीय बिजली ? कहां गिरती है आकाशीय बिजली ? बिहार में ही आकाशीय बिजली से सबसे ज्यादा क्यों लोग होते हैं प्रभावित ? ज्ञात हो कि आकाशीय बिजली दरअसल बिजली का वही झटका है जो बादलों और धरती के बीच की विद्युतीय असंतुलन से पैदा होता है. जब वातावरण में गर्मी और नमी अत्यधिक होती है तो ऊँचाई पर मौजूद बादलों के बीच टकराव से विद्युत आवेश पैदा होता है. यही आवेश जब धरती तक पहुँचता है तो लोग इसे बिजली गिरने की घटना कहते हैं.
बिहार क्यों है सबसे अधिक प्रभावित ?
बिहार का सबसे अधिक प्रभावित के पीछे (lightning strike in Bihar) जो वजह है वो इसकी भौगोलिक स्थिति, ग्रामीण जीवन और जागरूकता की कमी है.दरअसल बिहार का अधिकांश भाग गंगा के मैदानी क्षेत्र में स्थित है. यह समतल भूभाग विद्युत आवेशों के फैलाव के लिए अनुकूल होता है. साथ ही मानसून के समय वातावरण में भारी उमस और गर्मी भी बिजली गिरने की संभावना को बढ़ाती है. इसके साथ-साथ बिहार की अधिकांश आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है, जहाँ लोग खेतों में काम करते हैं या खुले आसमान के नीचे दैनिक जीवन बिताते हैं. बिजली गिरने के समय ये लोग सबसे अधिक जोखिम में होते हैं और सबसे अहम है लोगों में जागरूकता की कमी. प्रदेश में अब भी हजारों गांव ऐसे हैं जहाँ लोग आकाशीय बिजली से बचाव के तरीके नहीं जानते. बिजली गिरने के समय पेड़ के नीचे खड़े हो जाना,तालाब या खेतों में काम जारी रखना ये सब जानलेवा साबित होते हैं और जानकारी के अभाव में लोग ऐसा कर अपनी जान गंवा देते हैं.
लोगों को जागरूक करने के लिए उठाए जा रहे कदम
हालांकि सरकार ने लोगों को जागरूक करने के लिए कई कदम भी उठाए हैं जिसमें ‘DAMINI ऐप’ और मौसम विभाग की SMS चेतावनियों जैसी पहल की है शामिल है..परंतु अधिकांश ग्रामीण इलाकों में इंटरनेट, स्मार्टफोन और तकनीकी जानकारी की बहुत कमी है. स्थानीय प्रशासन की भूमिका भी कई बार सिर्फ आपदा के बाद मुआवजा बाँटने तक सीमित रह जाती है. बिहार में बाढ़ और लू की तरह ही आकाशीय बिजली एक मौसमी आपदा बन चुकी है. लेकिन इसके लिए अभी भी न तो पर्याप्त जागरूकता है और न ही बचाव की समुचित व्यवस्था. सरकार काम कर रही है लेकिन समीक्षा की बहुत जरूरत है.प्रकृति की यह मार कोई रोक तो नहीं सकता लेकिन इससे बचाव के उपाय तो किए जा सकते हैं. सवाल यह है कि हम कब तक इसे ‘कुदरत का खेल’ मानते रहेंगे और जागरूकता महज सरकारी नीति बनकर रह जाएगी? क्योंकि जब हर साल सैकड़ों लोग,चेतावनी की कमी.जागरूकता के अभाव और तकनीक समझ के बिना जान गंवा जाए तो दोष सिर्फ बादलों पर नहीं मढ़ा जा सकता.