गाजियाबाद : गाजियाबाद विकास प्राधिकरण (GDA) में अधिकारियों की लापरवाही का सिलसिला जारी है। News India 24×7 के संवाददाता कपिल मेहरा द्वारा किए गए रियलिटी चेक के दूसरे दिन भी यही स्थिति सामने आई कि निर्धारित जनसुनवाई के समय अधिकारी अपने कार्यालयों में मौजूद नहीं थे। सुबह 10 बजे GDA कार्यालय पहुंचकर की गई जांच में हैरान करने वाली तस्वीर सामने आई। एक-एक करके अधिकारियों के केबिन की जांच की गई तो हर जगह एक जैसा नजारा था – कुर्सियां खाली और अधिकारी गायब। बाहरी दिखावे के लिए केबिन के ताले जरूर खुले थे, लेकिन उन पर बैठने वाला कोई नहीं था। प्रशासनिक लापरवाही यह दर्शाती है कि आम जनता के साथ धोखाधड़ी सरेआम की जा रही है, एक आम आदमी जो अपनी समस्याओं के समाधान के लिए निर्धारित समय पर कार्यालय पहुंचती है लेकिन अधिकारियों की अनुपस्थिति के कारण निराश होकर लौटने को मजबूर होता है।
योगी आदित्यनाथ के आदेशों के खिलाफ
GDA उपाध्यक्ष अतुल वत्स के केबिन के बाहर लगे बोर्ड पर साफ लिखा था कि जनसुनवाई का समय सुबह 10 बजे से दोपहर 12 बजे तक है। लेकिन खुद उपाध्यक्ष महोदय भी अपने पद की गरिमा को ताक पर रखते हुए अनुपस्थित पाए गए। यह स्थिति तब और भी गंभीर हो जाती है जब यह याद आता है कि 2021 में कोरोना आपदा के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने आम जनता को राहत देते हुए अधिकारियों को सख्त निर्देश दिए थे कि वे अपने कार्यालय में 10 बजे से 12 बजे तक बैठकर जनता की समस्याओं की सुनवाई करें।
ट्रैफिक जाम में फंसे अधिकारी
कार्यालय के कर्मचारियों से मिला वही रटा हुआ जवाब – “साहब ट्रैफिक जाम में फंसे होंगे या साहब आ रहे होंगे।” हद तो तब हो गई जब एक अधिकारी के कर्मचारी ने उनका ऑफिस अंदर से बंद कर लिया। कैमरे को देखकर कर्मचारी घबरा गए और सफाई देने लगे कि अधिकारी बस 5 मिनट में आने वाले हैं, लेकिन यह 5 मिनट घंटों में बदल गए और अधिकारी नदारद रहे।
कुर्सियां खाली और अधिकारी गायब
इस मामले की पड़ताल के लिए जब GDA वीसी अतुल वत्स से बात करने की कोशिश की गई तो उन्होंने कैमरे पर आने से मना कर दिया। हालांकि, उन्होंने आश्वासन दिया कि यदि कोई भी कर्मचारी लेट आता है तो उसके खिलाफ सख्त विभागीय कार्रवाई की जाएगी। भ्रष्टाचार के मुद्दे पर उन्होंने बताया कि यदि कोई भी कर्मचारी भ्रष्टाचार में लिप्त पाया जाता है तो तत्काल प्रभाव से उसे निलंबित कर उसके ऊपर मुकदमा दर्ज कराया जाता है। सवाल यह उठता है कि आखिर क्यों प्रदेश के आला अधिकारी मुख्यमंत्री के आदेश को नजरअंदाज करते हुए नजर आ रहे हैं। यह आने वाला समय ही बताएगा कि क्या मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इन लापरवाह अफसरों पर कोई कार्रवाई करेंगे या सख्त आदेश सिर्फ कागजों में सिमटकर रह जाएंगे।